सनातन धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना गया है। किसी भी शुभ और मांगलिक कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा, स्तुति और जाप किया जाता है।

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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि सम्प्रभ।
निर्विघ्नन कुरु में देव सर्वकार्येषु सर्वदा।
अर्थात्- घुमावदार सूंड, विशाल शरीर, करोड़ों सूर्यों के समान महान प्रतिभा वाले। मेरे भगवान, हमेशा मेरे सभी कार्यों को बिना किसी बाधा के पूरा करें।
सनातन धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना गया है। किसी भी शुभ और मांगलिक कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा, स्तुति और जाप किया जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है। इसके अलावा ये रिद्धि और सिद्धि के स्वामी और दाता हैं। शास्त्रों में भगवान शिव को ज्ञान और बुद्धि का देवता माना गया है। कोई भी शुभ कार्य करने से पहले हमेशा श्री गणेशाय नमः का उच्चारण किया जाता है।
भगवान गणेश की स्तुति करने से जीवन में सुख-समृद्धि और लाभ की प्राप्ति होती है। बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित है। दूर्वा घास और मोदक भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय हैं। आइए जानते हैं कि भगवान गणेश की पूजा करने से कौन-कौन से सुख प्राप्त होते हैं।
सुख-समृद्धि के दाता भगवान गणेश
वैसे तो भगवान गणेश के हर रूप की विशेष पूजा से सभी प्रकार के शुभ फल मिलते हैं, लेकिन सभी मंगल की कामना के लिए सिंदूरी रंग के गणपति की पूजा अनुकूल होती है। यदि जीवन में हमेशा सुख-शांति और समृद्धि बनी रहे तो इसके लिए सफेद रंग के भगवान गणेश की मूर्ति की पूजा करनी चाहिए। हर घर के मुख्य दरवाजे पर हमेशा उनकी तस्वीर जरूर लगानी चाहिए। कला के क्षेत्र में प्रसिद्धि के लिए घर में नाचते हुए भगवान गणेश की मूर्ति रखनी चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए। बैठी हुई मुद्रा में गणेश जी की मूर्ति भी जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करती है।
बाईं सूंड वाले गणेशजी की मूर्ति का महत्व
आमतौर पर गणेश जी की मूर्ति में उनकी सूंड दायीं या बायीं ओर मुड़ी होती है। शास्त्रों में इन दोनों रूपों का भी अलग-अलग महत्व है। घर में हमेशा बाईं ओर मुड़ी हुई सूंड वाले गणेश जी की मूर्ति रखनी चाहिए। जबकि दाहिने हाथ की ओर मुड़ी हुई सूंड वाले गणेशजी को मंदिर में स्थापित करना चाहिए।
कार्यस्थल पर ऐसी होनी चाहिए गणेश जी की मूर्ति
दफ्तरों या प्रतिष्ठानों में गणेश प्रतिमा स्थापित करने के भी नियम हैं। कार्य स्थल पर हमेशा गणेश जी की खड़ी मूर्ति रखनी चाहिए। ध्यान रहे कि खड़े होते समय श्री गणेश जी के दोनों पैर जमीन को छूते हुए होने चाहिए। इससे कार्यस्थल पर हमेशा उत्साह और ताजगी बनी रहती है। कार्य स्थल पर गणेश जी की मूर्ति का मुख दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण में नहीं होना चाहिए।
वास्तु दोष निवारण के लिए-जिन घरों में भगवान गणेश की विशेष कृपा होती है वहां कभी भी नकारात्मक ऊर्जा का वास नहीं होता है। भगवान गणेश की मूर्ति हमेशा से ही घर के वास्तुदोष को दूर करने में कारगर मानी गई है। घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की मूर्ति या तस्वीर लगाने से वास्तु दोष नहीं होता है।
मुख्य द्वार से जुड़े दोष को दूर करने के लिए
यदि किसी मकान के मुख्य द्वार से संबंधित कोई वास्तु दोष हो जैसे भवन के द्वार के सामने पेड़, मंदिर, खंभा और सड़क आदि। इस वास्तुदोष को द्वारवेध दोष कहते हैं। इस दोष को दूर करने के लिए मुख्य द्वार पर गणेश जी की बैठी हुई मूर्ति लगानी चाहिए।
अशुभ ग्रहों के दोष दूर करने के लिए
जिन जातकों की कुंडली में ग्रह दोष होते हैं उनके लिए गणेश जी की पूजा करना बहुत फलदायी होता है। स्वास्तिक के चिन्ह को गणेशजी का रूप माना गया है। वास्तु शास्त्र भी स्वस्तिक को दोषों के निवारण के लिए उपयोगी मानता है। इसके अलावा ग्रह शांति के लिए घी में सिंदूर मिलाकर दीवार पर स्वास्तिक का निशान बनाना चाहिए।