Matsya Dwadashi 2022 Date Puja Vidhi Katha Subh Muhurt upay Significance in Hindi | Matsya Dwadashi 2022: कब मनाई जाएगी मत्स्य द्वादशी, जानें पूजा विधि, कथा और शुभ मुहूर्त

भगवान श्री विष्णु के मत्स्य अवतार से जुड़े शुभ पर्व मत्स्य द्वादशी की कथा, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त जानने के लिए इस लेख को अवश्य पढ़ें।

मत्स्य द्वादशी 2022: कब मनाई जाएगी मत्स्य द्वादशी, जानिए पूजा विधि, कथा और शुभ मुहूर्त

मत्स्य द्वादशी 2022 पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

मत्स्य द्वादशी 2022: हिंदू धर्म में भगवान श्री विष्णु को कल्याण का देवता माना जाता है, जो अपने भक्तों की रक्षा के लिए समय-समय पर धरती पर अवतार लेते रहे हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री विष्णु ने पृथ्वी के प्रथम पुरुष यानी मनु की रक्षा के लिए पहला अवतार लिया था। हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार सतयुग में जिस शुभ तिथि को भगवान विष्णु ने अपना पहला मत्स्य अवतार लिया था उसे मास्य द्वादशी के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं मत्स्य द्वादशी के पावन पर्व का धार्मिक महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त आदि के बारे में विस्तार से।

मत्स्य द्वादशी के व्रत और पूजन का फल

मान्यता है कि मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान विष्णु की भक्ति और विश्वास के साथ पूजा करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने वाले सच्चे साधक के कष्ट श्री हरि दूर कर देते हैं और उसका घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहता है। ऐसी ही शुभ और मंगल कामनाओं के लिए भगवान विष्णु के भक्त देश के सभी मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। भगवान विष्णु के मछली अवतार को समर्पित एकमात्र मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरुपति शहर में स्थित है, जिसे ‘नागलापुरम वेद नारायण स्वामी मंदिर’ के नाम से जाना जाता है।

मत्स्य द्वादशी का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 04 दिसंबर 2022 को प्रात: 05:34 से प्रारंभ होकर 05 दिसंबर 2022 को प्रातः 05:57 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार मत्स्य द्वादशी 04 दिसंबर को मनाई जाएगी। 2022.

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मत्स्य द्वादशी की पूजा विधि

भगवान श्री विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा करने के लिए मत्स्य द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान और ध्यान करने के बाद उदीयमान भगवान सूर्य को जल अर्पित करें और फिर इस दिन व्रत का संकल्प लें। इसके बाद जल से भरे चार कलशों में पीले फूल डालकर कलश पर पीले आसन पर भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद विधि-विधान से उनकी पूजा करें और शुद्ध घी का दीपक जलाएं। भगवान श्री विष्णु की पूजा में जो भी भोग लगाएं उसमें तुलसी दल अवश्य चढ़ाएं और तुलसी या पीले चंदन की माला से ॐ मत्स्य रूपाय नमः मंत्र का जाप करें।

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