जीवन में अक्सर लोग अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं, लेकिन अपने अधिकारों को याद रखते हैं। पढ़िए मनुष्य के कर्तव्य से जुड़े 5 अनमोल पाठ।

कर्तव्य पर प्रेरक उद्धरण
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अपने कुछ कर्तव्य अवश्य होते हैं, जो उसे अपने जीवन में चाहे या न चाहें, करने ही पड़ते हैं। फिर चाहे वह माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति रवैया हो या बच्चों का अपने माता-पिता के प्रति रवैया। इसी तरह आम नागरिक से लेकर देश के बड़े पदों पर बैठे लोगों का भी अपना-अपना कर्तव्य है। जीवन में कुछ लोग अपनी मर्जी से अपनी जिम्मेदारी समझ कर अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं तो कुछ लोग दबाव में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं।
हालांकि, सही अर्थों में कर्तव्य का अर्थ बाहरी दबाव से नहीं बल्कि अपनी इच्छा से दी गई जिम्मेदारियों का निर्वहन करना है। कर्तव्य बोध के बिना जीवन में कार्य करना बिना भूख के भोजन करने के समान है। ऐसे में इंसान को जो भी कर्तव्य होते हैं, उन्हें बहुत मन लगाकर करना चाहिए। आइए पढ़ते हैं जीवन से संबंधित कर्तव्य के सही अर्थ और महत्व के बारे में विद्वानों और महापुरुषों द्वारा कहे गए 5 प्रेरक वाक्य।
- कर्तव्य कभी आग और पानी की तरह नहीं बहता, लेकिन कर्तव्य पालन मन की शांति का मूल मंत्र है।
- यदि आप बहुत कोशिश करने के बाद भी अपने जीवन के लक्ष्य की पहचान नहीं कर पा रहे हैं, तो उसका निर्माण करना आपका मुख्य कर्तव्य है।
- कर्तव्य कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे नापा और नापा जा सके, बल्कि जो आपकी बुद्धि और हृदय को सत्य लगे, वही आपका कर्तव्य है।
- मनुष्य को जीवन में प्रत्येक अवसर और परिस्थिति में जो भी कर्तव्य मिले उसे अपना परम धर्म समझकर पूरा करना चाहिए।
- आज आपके सामने जो कर्तव्य और उत्तरदायित्व हैं, उन्हें पूरी निष्ठा और अविलंब पूरा करना आपका कर्तव्य है और यही आज के अधिकारों की पूर्ति भी है।