TABLE OF CONTENT
Baikunth का अर्थ क्या है |
बैकुंठ धाम स्वयं भगवान विष्णु का लोक है | अत: बैकुंठ उसे माना गया है , जहा भगवान विष्णु का वास है |
भगवान विष्णु का Baikunth Dham कहाँ पर है?
Baikunth Dham ऐसा स्थान है जहां कर्महीनता एवं निष्क्रियता नहीं है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मलोक में ब्रह्मदेव, कैलाश पर महादेव एवं बैकुंठ में भगवान विष्णु बसते हैं। श्रीकृष्ण के अवतरण के बाद बैकुंठ को गोलोक भी कहा जाता है। इस लोक में लोग अजर एवं अमर होते हैं।
श्री रामानुजम कहते हैं कि वैकुण्ठ सर्वोत्तम धाम है जिससे ऊपर कुछ भी शेष नहीं रहता। इसकी स्थिति सत्यलोक से २६२००००० (दो करोड़ बासठ लाख) योजन (२०९६००००० किलोमीटर) ऊपर बताई गयी है। बैकुंठ के मुख्यद्वार की रक्षा भगवान विष्णु के दो प्रमुख पार्षद जय-विजय करते हैं। इन्ही जय-विजय को सनत्कुमारों द्वारा श्राप मिला था।
हालाँकि कई लोग वैकुण्ठधाम को ही परमधाम समझते हैं किन्तु ऐसा नहीं है। सभी लोकों से भी जो सबसे ऊपर है वही परमधाम है जहाँ जाना ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के अतिरिक्त किसी और के वश में नहीं है।
प्रथम Baikunth Dham
पृथ्वी पर बद्रीनाथ, जगन्नाथ और द्वारिकापुरी को भी वैकुंठ धाम कहा जाता है। चारों धामों में सर्वश्रेष्ठ बद्रीनाथ को विशेषरूप से बैकुंठ का स्थान प्राप्त है जिसे भगवान विष्णु का दरबार भी कहते हैं। यहाँ नारायण के ५ स्वरूपों की पूजा होती है जिसे पञ्चबद्री कहते हैं। पञ्चबद्री में श्री विशाल बद्री, श्री योगध्यान बद्री, श्री भविष्य बद्री, श्री वृद्ध बद्री और श्री आदि बद्री की गिनती होती है। बद्रीनाथ के अलावा द्वारिका और जगन्नाथपुरी को भी वैकुंठ धाम कहा जाता है। कहते हैं कि सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना नारायण ने की थी। त्रेतायुग में रामेश्वरम् की स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। द्वापर युग में द्वारिकाधाम की स्थापना योगीश्वर श्रीकृष्ण ने की और कलयुग में जगन्नाथ धाम को ही वैकुंठ कहा जाता है। ब्रह्म एवं स्कन्द पुराण के अनुसार जगन्नाथ पुरी का मंदिर जिसे बैकुंठ माना जाता है वही भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था।
द्वितीय Baikunth Dham
भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारिका के बाद एक ओर नगर बसाया था जिसे वैकुंठ कहा जाता था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार अरावली की पहाड़ी श्रृंखला पर कहीं वैकुंठ धाम बसाया गया था, जहां इंसान नहीं, सिर्फ साधक ही रहते थे। भारत की भौगोलिक संरचना में अरावली प्राचीनतम पर्वत है। भू-शास्त्र के अनुसार भारत का सबसे प्राचीन पर्वत अरावली का पर्वत है। माना जाता है कि यहीं पर श्रीकृष्ण ने वैकुंठ नगरी बसाई थी। राजस्थान में यह पहाड़ नैऋत्य दिशा से चलता हुआ ईशान दिशा में करीब दिल्ली तक पहुंचा है। अरावली या ‘अर्वली‘ उत्तर भारतीय पर्वतमाला है। राजस्थान राज्य के पूर्वोत्तर क्षेत्र से गुजरती ५६० किलोमीटर लंबी इस पर्वतमाला की कुछ चट्टानी पहाड़ियां दिल्ली के दक्षिण हिस्से तक चली गई हैं। अगर गुजरात के किनारे अर्बुद या माउंट आबू का पहाड़ उसका एक सिरा है तो दिल्ली के पास की छोटी-छोटी पहाड़ियां उसका दूसरा सिरा है।
तृतीय Baikunth Dham
दूसरे वैकुंठ की स्थिति धरती के बाहर बताई गई है। इसे ब्रह्मांड से बाहर और तीनों लोकों से ऊपर बताया गया है। यह धाम दिखाई देने वाली प्रकृति से ३ गुणा बड़ा है जिसकी सुरक्षा के लिए भगवान के ९६००००००० (९६ करोड़) पार्षद तैनात हैं।
जबकि जिसकी भक्ति शुद्ध होती है,वही निरंतर आगे बढ़ता रहता है। ये सभी देवता जीवात्मा के साथ एकपाद भूमि की अंतिम सीमा तक जाते हैं किन्तु अगर जीवात्मा सच्चे मन से उससे भी आगे बढ़ता है तो उसके बाद प्रवाहित होने वाली विरजा नदी के तट पर सभी देवता उसका पीछा छोड़ देते हैं। इसी एकपाद विभूति में हमारा संपूर्ण ब्रह्मांड और सारे लोक अवस्थित हैं जिसके बाद बैकुंठधाम की सीमा प्रारम्भ होती है।
इसके बाद त्रिपाद विभूति में विरजा नदी है जहाँ से बैकुंठ की सीमा आरम्भ होती है जहाँ भगवान विष्णु की आज्ञा बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता। इसी विरजा नदी में वह जीवात्मा नदी में डुबकी लगाकर उस पार चली जाती है जिसके बाद पार्षदगण उसको सीधे श्रीहरि विष्णु के पास ले जाते हैं। वहाँ श्रीहरि विष्णु के दर्शन के बाद वो जीवात्मा सदा के लिए वही स्थित हो जाती है।
गीता के ८वें अध्याय के २१वें श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं – “‘हे अर्जुन!
अव्यक्त ‘अक्षर’ इस नाम से कहा गया है, उसी अक्षर नामक अव्यक्त भाव को परमगति कहते हैं तथा जिस सनातन अव्यक्त भाव को प्राप्त होकर मनुष्य वापस नहीं आते, वह मेरा परम धाम है।”
Baikunth चतुर्दशी कब है ( 2021 ) ?
इस बार बैकुंठ चतुर्दशी 17 नवम्बर 2021 बुधवार को मनाई जाएगी |
|| जय श्री हरि ||
दोस्तों Comment में जय श्री हरि जरुर लिखे | अगर आपके पास भी कुछ रोचक तथ्य है तो जरुर बताए | धन्यवाद
यह भी पढ़े
समुंद्र-मंथन और Bhagwan Vishnu का मोहिनी अवतार
jai shri hari