दिल्ली के लाल किला परिसर से भव्य रूप से जारी सामवेद के उर्दू अनुवाद पर शंकराचार्य सहित संस्कृत के विद्वान सवाल क्यों उठा रहे हैं? जानने के लिए इस लेख को अवश्य पढ़ें।

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जाने-माने फिल्म निर्देशक इकबाल दुर्रानी ने हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ सामवेद का उर्दू में अनुवाद किया है। जिसे हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली के लाल किला परिसर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की मौजूदगी में जारी किया गया। यह हिंदू धर्म से जुड़े चार वेदों में से किसी एक का पहला उर्दू अनुवाद माना जाता है। सामवेद के उर्दू अनुवाद के विमोचन पर दुर्रानी ने इसे प्रेमगीत बताते हुए मदरसों में पढ़ाने की भी वकालत की है। जिन वेदों के अध्ययन, अध्यापन और पाठ को हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण अंग माना गया है, क्या इस विचार को वास्तव में व्यवहार में लाया जा सकता है। आइए विस्तार से जानते हैं कि दुर्रानी द्वारा किए गए और मदरसों में पढ़ाए जाने वाले सामवेद के उर्दू अनुवाद के बारे में संस्कृत के विद्वानों और संतों की क्या राय है।
वेद पढ़ने का अधिकार किसे है
ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती कहते हैं कि हिंदू धर्म में बिना उपनयन संस्कार के किसी को वेद पर अधिकार नहीं है। जिसने परंपरा और नियमों के अनुसार इसका अध्ययन किया है, वही इसके सार का अनुवाद कर सकता है। दुर्रानी द्वारा सामवेद के उर्दू अनुवाद पर सवाल उठाते हुए शंकराचार्य कहते हैं कि उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिए कि उन्होंने किस परंपरा के तहत सामवेद का अध्ययन किया है।
क्या कहते हैं काशी के विद्वान
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. रामनारायण द्विवेदी कहते हैं कि मदरसों में सामवेद पढ़ाने के लिए वेदों के अध्ययन के लिए पात्रता आवश्यक है, लेकिन इसके दो भाग हैं, एक वेद भाष्य और एक मन्त्र। सामवेद गायन का विषय है। यह विषय उस संगीत से संबंधित है, जो जीवों के कल्याण, स्वास्थ्य और मस्तिष्क को तेज करने का मार्ग प्रशस्त करता है। ऐसे में यदि सामवेद का अध्ययन-अध्यापन कार्य पवित्रता, पवित्रता और गुरु-शिष्य परंपरा का पालन करते हुए किया जाता है, तो इसमें कोई बुराई नहीं है।
सामवेद का अनुवाद कठिन क्यों है?
लाल बहादुर संस्कृत संस्थान में वेद विभाग के प्रोफेसर देवेंद्र प्रसाद मिश्र कहते हैं कि चारों वेदों में सामवेद सबसे कठिन ग्रंथों में से एक माना जाता है। ऐसे में कोई अन्य भाषा बोलने वाला व्यक्ति इसका अनुवाद बिल्कुल नहीं कर सकता है। निश्चय ही यह एक काल्पनिक अनुवाद रहा होगा। उनका मानना है कि कोई भी विद्वान वेदों के मन्त्रों का उर्दू में अनुवाद ठीक से नहीं कर सकता, क्योंकि इसमें स्वर प्रणाली है। एक उर्दू भाषी के लिए ही नहीं, एक हिंदी भाषी के लिए भी यह कार्य असम्भव है। समर्थक। मिश्र कहते हैं कि, मैं यजुर्वेद का प्राध्यापक हूं लेकिन सामवेद की ठीक से व्याख्या नहीं कर सकता। इस विषय का विद्वान ही इसे प्रस्तुत कर सकता है।
मदरसे में सामवेद की पढ़ाई कैसे होगी?
सप्तर्षिकुलम के अध्यक्ष डॉ. राजेश कुमार मिश्र के अनुसार सामवेद सामान्य संस्कृत नहीं बल्कि वैदिक संस्कृत का ग्रन्थ है, तो क्या मदरसों में बच्चों को वैदिक संस्कृत में दक्ष बनाया जा सकता है? खासतौर पर जब यज्ञोपवीत संस्कार होना और उसे पढ़ने के लिए उसके नियमों का पालन करना जरूरी हो। ऐसे में क्या उनके लिए वैदिक रीति-रिवाजों को मानना और उन्हें मदरसे में स्वीकार करना संभव होगा? डॉ. मिश्र के अनुसार सामवेद में सभी प्रकार के गीत नारदीय शिक्षा के अनुसार संगीत पर आधारित हैं, जबकि इस्लाम में संगीत को हराम माना गया है। इसी प्रकार वेदों को समझने के लिए पहले वेदांगों का अध्ययन करना होगा। क्या मदरसा के छात्र व्याकरण, शिक्षा, छंद, निरुक्त, कल्प और ज्योतिष इन छह वेदांगों का अध्ययन करेंगे?
सामवेद का धार्मिक महत्व?
हिंदू परंपरा में सामवेद का अध्ययन क्यों किया जाता है, इसके जवाब में, शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद कहते हैं, “ब्रह्मणे निष्कारणो धर्म: षडंगो वेदोस्ध्येयो ग्याशचेति।” अर्थात एक ब्राह्मण को या यूँ कहें कि एक विद्वान को बिना किसी कारण के, अर्थात बिना किसी इच्छा के वेदों का अध्ययन करना चाहिए। शंकराचार्य के अनुसार वेदों का अध्ययन या पाठ यह सोचकर नहीं किया जाता कि पढ़ने से लाभ होगा, बल्कि यह हमारा धर्म है, इसलिए हम इसका पाठ करते हैं।
सामवेद का आध्यात्मिक महत्व
समर्थक। रामनारायण द्विवेदी कहते हैं कि सामवेद में वह ज्ञान है, जिसे प्राप्त करने पर व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास होता है। जो लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं या जिनकी बुद्धि कमजोर है उनके लिए यह बहुत फायदेमंद है। यदि वे सामवेद की पद्धति के अनुसार अध्ययन-अध्यापन करते हैं तो उनका मस्तिष्क उर्वर हो जाता है।